बहुत नज़दीक का भी साथ सहसा छूट जाता है
पखेरू फुर्र हो जाता है पिंजरा छूट जाता है
कभी मुश्किल से मुश्किल काम हो जाते हैं चुटकी में
कभी आसान कामों में पसीना छूट जाता है
छिपाकर दोस्तों से अपनी कमज़ोरी को मत रखिए
बहुत दिन तक नहीं टिकता मुलम्मा छूट जाता है
भले ही बेटियों का हक़ है उसके कोने-कोने पर
मगर दस्तूर है बाबुल का अँगना छूट जाता है
भरे परिवार का मेला लगाया है यहाँ जिसने
वही जब शाम आती है तो तन्हा छूट जाता है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें