काम आएगा यही , यह जान कर चलते रहे
झूठ को सच जिंदगी का मान कर चलते रहे
रास्ते की मुश्किलों से जूझते – लड़ते हुए
हम कोई संकल्प मन में ठान कर चलते रहे
साफ़ मन था और थी दौलत अना की उनके पास
मुफ़लिसी में भी वो सीना तान कर चलते रहे
वक्त लग जाएगा कितना ये कभी सोचा नहीं
हम तो अपनी मंज़िलें पहचान कर चलते रहे
लोग टीका - टिप्पणी करते रहे क्या क्या मगर
वो कभी बोले नहीं विष पान कर चलते रहे
बहुत अच्छी ग़ज़ल है..... बधाई.
जवाब देंहटाएंबड़ा प्यारा लिखते हो ओमप्रकाश जी , लगता है आप अपना स्पष्ट प्रभाव छोड़ेंगे !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
bahut khoob sirji
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संदीप जी....
हटाएंधन्यवाद संदीप जी....
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