शुक्रवार, जुलाई 9

दीपमाला सज गई हर देहरी के सामने

दीपमाला सज गई हर देहरी के सामने
अब अमावस क्या टिकेगी रौशनी के सामने

मानता हूँ है बड़ी काली, बड़ी ज़िद्दी मगर
एक तीली ही बहुत है तीरगी के सामने

सब धुरन्धर सर झुकाए हैं खड़े दरबार में
वक़्त कैसा आ गया है द्रौपदी के सामने

चाहता है और ज़्यादा, और ज़्यादा जोड़ना
लक्ष्य शायद अब यही है आदमी के सामने

था तो भाई ही मगर जब जान पर बन आई तो
कंस कैसे पेश आया द्रौपदी के सामने

शे’र उसके याद हैं पर कौन पहचाने उसे
वो बहुत छोटा है अपनी शायरी के सामने

ध्यान फिर रखता नहीं है क्यों बुजुर्गों का क

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