शुक्रवार, जुलाई 9

छिपे हैं मन में जो भगवान से वो पाप डरते हैं

छिपे हैं मन में जो भगवान से वो पाप डरते हैं
डराता वो नहीं है लोग अपने आप डरते हैं

यहाँ अब आधुनिक संगीत का ये हाल है यारों
बहुत उस्ताद भी लेते हुए आलाप डरते हैं

कहीं बैठा हुआ है भय हमारे मन के अन्दर तो
सुनाई मित्र की भी दे अगर पदचाप डरते हैं

निकल जाती है अक्सर चीख जब डरते हैं सपनों में
हक़ीक़त में तो ये होता है हम चुपचाप डरते हैं

नतीजा देखिये उम्मीद के बढते दबावों का
उधर संतान डरती है इधर माँ-बाप डरते हैं

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