छीन लेगी नेकियाँ ईमान को ले जाएगी
भूख दौलत की कहाँ इंसान को ले जाएगी
बेचकर गुर्दे असीमित धन कमाने की हवस
किस जगह इस दूसरे भगवन को ले जाएगी
आधुनिकता की हवा अब तेज़ आंधी बन गई
सोचता हूँ किस तरफ़ संतान को ले जाएगी
शहर की आहट हमें सड़कें दिखाएगी नई
फिर हमारे खेत को, खलिहान को ले जाएगी
सिन्धु हो,सुरसा हो,कुछ हो किन्तु इच्छाशक्ति तो
हैं जहाँ सीता वहाँ हनुमान को ले जाएगी
गांव की बोली तुझे शर्मिंदगी देने लगी
ये बनावट ही तेरी पहचान को ले जाएगी
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