गुरुवार, मार्च 17

खेत सारे छिन गए....

खेत सारे छिन गए घर - बार छोटा रह गया
गाँव मेरा शहर का बस इक मुहल्ला रह गया

सावधानी है बहुत ,खुलकर कोई मिलता नहीं
आदमी पर आदमी का ये भरोसा रह गया

प्रेम ने तोड़ीं हमेशा जाति – मज़हब की हदें
पर ज़माना आज तक इनमें ही उलझा रह गया

बेशक़ीमत चीज़ तो गहराइयों में थी छिपी
डर गया जो,वो किनारे पर ही बैठा रह गया

जिससे अपनी ख़ुद की रखवाली भी हो सकती नहीं
घर की रखवाली की ख़ातिर वो ही बूढ़ा रह गया

6 टिप्‍पणियां:

  1. 'बेशक़ीमत चीज़ तो गहराइयों में थी छिपी'
    संवेदनाओं को जगाती एक अच्छी ग़ज़ल|बहुत पसंद आयी|
    होली की शुभकामनायें|
    -अरुण मिश्र

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  2. प्रेम ने तोड़ीं हमेशा जाति – मज़हब की हदें
    पर ज़माना आज तक इनमें ही उलझा रह गया

    यथार्थपरक बेहतरीन ग़ज़ल...

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  3. सावधानी है बहुत ,खुलकर कोई मिलता नहीं
    आदमी पर आदमी का ये भरोसा रह गया

    आज के माहौल पर इस से बढ़िया शेर नहीं हो सकता...आपकी कलम को नमन...बेहद कमाल का लिखते हैं आप...वाह...

    नीरज

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  4. बड़े सरल शब्दों में आप पानी बात कहने में कामयाब रहे ...
    हार्दिक शुभकामनायें !!

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  5. waaah sirji, bahut khoob...khaaskar 2nd n 4th sher...
    Aapki ghazalen parh kar, aur khayaalaat ko samajh kar, munawwar rana sb ka andaaz, mizaaj aur lehja zehn me taaza ho jata hai

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